बीबीसी के लिए किया गया एक नया शोध बताता है कि इन बच्चों और हज़ारों ऐसे बच्चों के साथ चीन में क्या हो रहा है.
जर्मन शोधकर्ता डॉक्टर एडरियन ज़ेंज़ को शिनजियांग में मुसलमानों को हिरासत में रखे जाने को दुनिया के सामने लाने के लिए जाना जाता है.
सार्वजनिक रूप से उपलब्ध सरकारी दस्तावेज़ों के आधार पर उन्होंने एक रिपोर्ट तैयार की है जो बताती है कि चीन के शिनजियांग में सरकारी स्कूल परिसर किस तेज़ी से बढ़ रहे हैं.
स्कूल परिसरों को बड़ा किया जा रहा है, नए हॉस्टलों का निर्माण किया जा रहा है और उनकी क्षमता को बड़े पैमाने पर बढ़ाया जा रहा है.
ग़ौरतलब है कि चीनी सरकार बच्चों का चौबीस घंटे ख्याल रखने की अपनी क्षमता को भी बढ़ा रही है.
इसी दौरान चीन हिरासत केंद्रों का भी बड़े पैमाने पर निर्माण कर रहा है.
माना जा रहा है कि चीन ये सब वीगर मुसलमानों को ध्यान में रखकर कर रहा है.
सिर्फ़ एक ही साल, यानी 2017 में, शिनजियांग में किंडरगार्टन स्कूलों में पंजीकृत छात्रों की संख्या में पांच लाख से अधिक का इज़ाफ़ा हुआ है. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक इनमें से 90 फ़ीसदी से अधिक वीगर एवं अन्य मुसलमान अल्पसंख्य बच्चे हैं.
इसका नतीजा ये हुआ है कि एक समय शिनजियांग में स्कूल जाने वाले बच्चों का प्रतिशत सबसे कम था लेकिन अब ये समूचे चीन में सबसे ज़्यादा हो गया है.
सिर्फ़ दक्षिणी शिनजियांग में ही प्रशासन ने किंडरगार्टन स्कूलों के निर्माण में 1.2 अरब डॉलर ख़र्च किए हैं. सबसे ज़्यादा वीगर मुसलमान दक्षिणी शिनजियांग में ही रहते हैं.
डॉक्टर ज़ेंज़ का अध्ययन बताता है कि नए निर्माण में सबसे ज़्यादा ध्यान हॉस्टल बनाने पर दिया जा रहा है.
ऐसा लगता है कि शिनज़ियांग में शिक्षा का यह विस्तार उसी भाव से किया गया है जिसके तहत बड़े पैमाने पर व्यस्कों को क़ैद किया गया है. और इसका असर लगभग सभी वीगर और अन्य अल्पसंख्यकों के बच्चों पर पड़ रहा है, भले ही उनके माता-पिता कैंपों में हैं या नहीं.
पिछले साल अप्रैल में प्रशासन ने आसपास के गांवों से 2000 बच्चों को येचेंग काउंटी नंबर चार के बोर्डिंग मिडल स्कूल में डाल दिया था.
ऊपर की तस्वीर में वह जगह दिखती है जहां पर शिनज़ियांग के दक्षिणी शहर येचेंग में दो नए बोर्डिंग स्कूल बनाने की तैयारी चल रही है.
इस स्लाइडर की मदद से आप देख सकते हैं कि कैसे बीच में एस स्पोर्ट्स फील्ड के दोनों ओर दो मिडल स्कूल बनाए गए हैं. इन स्कूलों का आकार पूरे देश के स्कूलों के औसत आकार से तीन गुना ज़्यादा है और इन्हें तैयार भी एक साल से थोड़ा ही ज़्यादा समय में किया गया है.
सरकार प्रचारित करती है कि ये बोर्डिंग स्कूल "सामाजिक स्थिरता और शांति" बनाए रखने में मददगार हैं और ये "स्कूल अभिभावकों की जगह ले रहे हैं." ज़ेंज़ बताते हैं कि इनका मकसद कुछ अलग ही है.
वह कहते हैं, "बोर्डिंग स्कूल की मदद से अल्पसंख्यक समाजों की सांस्कृतिक री-इंजीनियरिंग के लिए परिवेश बनता है."
उनका शोध बताता है कि कैंपों की ही तरह इन स्कूलों के परिसरों में वीगर या अन्य स्थानीय भाषाओं को ख़त्म करने का संगठित अभियान चला हुआ है.
अगर छात्र या अध्यापक स्कूल में चीनी भाषा के अलावा और कोई भाषा बोलते हैं तो उनको सज़ा देने के लिए हर स्कूल में नियम बने हुए हैं.
यह बात उन आधिकारिक बयानों से अनुकूल है जिनमें दावा किया जाता है कि शिनज़ियांग में सभी स्कूलों में पूरी तरह चीनी भाषा में पढ़ाई होने लगी है.
बीबीसी से बात करते हुए शिनज़ियांग के प्रचार विभाग के वरिष्ठ अधिकारी शू गिज़ियांग ने इस बात को ग़लत बताया कि इस अभियान के कारण माता-पिता से दूर हुए बहुत सारे बच्चों की देखरेख सरकार को करनी पड़ रही है.
वह हंसते हुए कहते हैं, "अगर परिवार के भी सदस्य वोकेशनल ट्रेनिंग पर भेजा गया होगा तो उस परिवार को ज़रूरत दिक्कत होगी. मगर मैंने ऐसा कोई मामला नहीं देखा."
मगर ज़ेंज़ के काम का सबसे अहम हिस्सा शायद वह सबूत है जो दिखाता है कि हिरासत में लिए गए लोगों के बच्चों को बड़े पैमाने पर बोर्डिंग स्कूल सिस्टम में डाला जा रहा है.
वोकेशनल ट्रेनिंग या फिर जेल जाने वाले लोगों के बच्चों की स्थिति का हिसाब रखने के लिए स्थानीय प्रशासन ख़ास फ़ॉर्म इस्तेमाल करते हैं और तय करते हैं कि इन बच्चों को सरकारी देखरेख की ज़रूरत है या नहीं.
ज़ेंज़ को एक सरकारी दस्तावेज़ ऐसा मिला जिसमें "ज़रूरतमंद समूहों" को दी जाने वाले कई तरह के अनुदानों का ज़िक्र था. इनमें वे परिवार भी थे, जिनमें "पति-पत्नी दोनों वोकेशनल ट्रेनिंग कर रहे हों."
साथ ही एजुकेशन ब्यूरो को निर्देश दिए गए थे जिनके तहत कैंपों में रहने वाले लोगों के बच्चों की ज़रूरतों का ख्याल रखना बाध्यकारी बना दिया गया है.
इसमें एक पैरा में लिखा है कि स्कूलों को मज़बूत मनोवैज्ञानिक काउंसलिंग करनी चाहिए. यह वाक्य दिखाता है कि बच्चों के साथ वैसा ही करने की बात हो रही है, जैसा कैंपों मे रखे जा रहे उनके माता-पिता के साथ किया जा रहा होता है.
स्पष्ट है कि इस नज़रबंदी के कारण बच्चों पर पड़े रहे असर को एक अहम सामाजिक समस्या के तौर पर देखा जाने लगा है. इससे निपटने की कुछ कोशिशें भी जा रही हैं मगर प्रशासन इसे प्रचारित नहीं करना चाहता.
जर्मन शोधकर्ता डॉक्टर एडरियन ज़ेंज़ को शिनजियांग में मुसलमानों को हिरासत में रखे जाने को दुनिया के सामने लाने के लिए जाना जाता है.
सार्वजनिक रूप से उपलब्ध सरकारी दस्तावेज़ों के आधार पर उन्होंने एक रिपोर्ट तैयार की है जो बताती है कि चीन के शिनजियांग में सरकारी स्कूल परिसर किस तेज़ी से बढ़ रहे हैं.
स्कूल परिसरों को बड़ा किया जा रहा है, नए हॉस्टलों का निर्माण किया जा रहा है और उनकी क्षमता को बड़े पैमाने पर बढ़ाया जा रहा है.
ग़ौरतलब है कि चीनी सरकार बच्चों का चौबीस घंटे ख्याल रखने की अपनी क्षमता को भी बढ़ा रही है.
इसी दौरान चीन हिरासत केंद्रों का भी बड़े पैमाने पर निर्माण कर रहा है.
माना जा रहा है कि चीन ये सब वीगर मुसलमानों को ध्यान में रखकर कर रहा है.
सिर्फ़ एक ही साल, यानी 2017 में, शिनजियांग में किंडरगार्टन स्कूलों में पंजीकृत छात्रों की संख्या में पांच लाख से अधिक का इज़ाफ़ा हुआ है. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक इनमें से 90 फ़ीसदी से अधिक वीगर एवं अन्य मुसलमान अल्पसंख्य बच्चे हैं.
इसका नतीजा ये हुआ है कि एक समय शिनजियांग में स्कूल जाने वाले बच्चों का प्रतिशत सबसे कम था लेकिन अब ये समूचे चीन में सबसे ज़्यादा हो गया है.
सिर्फ़ दक्षिणी शिनजियांग में ही प्रशासन ने किंडरगार्टन स्कूलों के निर्माण में 1.2 अरब डॉलर ख़र्च किए हैं. सबसे ज़्यादा वीगर मुसलमान दक्षिणी शिनजियांग में ही रहते हैं.
डॉक्टर ज़ेंज़ का अध्ययन बताता है कि नए निर्माण में सबसे ज़्यादा ध्यान हॉस्टल बनाने पर दिया जा रहा है.
ऐसा लगता है कि शिनज़ियांग में शिक्षा का यह विस्तार उसी भाव से किया गया है जिसके तहत बड़े पैमाने पर व्यस्कों को क़ैद किया गया है. और इसका असर लगभग सभी वीगर और अन्य अल्पसंख्यकों के बच्चों पर पड़ रहा है, भले ही उनके माता-पिता कैंपों में हैं या नहीं.
पिछले साल अप्रैल में प्रशासन ने आसपास के गांवों से 2000 बच्चों को येचेंग काउंटी नंबर चार के बोर्डिंग मिडल स्कूल में डाल दिया था.
ऊपर की तस्वीर में वह जगह दिखती है जहां पर शिनज़ियांग के दक्षिणी शहर येचेंग में दो नए बोर्डिंग स्कूल बनाने की तैयारी चल रही है.
इस स्लाइडर की मदद से आप देख सकते हैं कि कैसे बीच में एस स्पोर्ट्स फील्ड के दोनों ओर दो मिडल स्कूल बनाए गए हैं. इन स्कूलों का आकार पूरे देश के स्कूलों के औसत आकार से तीन गुना ज़्यादा है और इन्हें तैयार भी एक साल से थोड़ा ही ज़्यादा समय में किया गया है.
सरकार प्रचारित करती है कि ये बोर्डिंग स्कूल "सामाजिक स्थिरता और शांति" बनाए रखने में मददगार हैं और ये "स्कूल अभिभावकों की जगह ले रहे हैं." ज़ेंज़ बताते हैं कि इनका मकसद कुछ अलग ही है.
वह कहते हैं, "बोर्डिंग स्कूल की मदद से अल्पसंख्यक समाजों की सांस्कृतिक री-इंजीनियरिंग के लिए परिवेश बनता है."
उनका शोध बताता है कि कैंपों की ही तरह इन स्कूलों के परिसरों में वीगर या अन्य स्थानीय भाषाओं को ख़त्म करने का संगठित अभियान चला हुआ है.
अगर छात्र या अध्यापक स्कूल में चीनी भाषा के अलावा और कोई भाषा बोलते हैं तो उनको सज़ा देने के लिए हर स्कूल में नियम बने हुए हैं.
यह बात उन आधिकारिक बयानों से अनुकूल है जिनमें दावा किया जाता है कि शिनज़ियांग में सभी स्कूलों में पूरी तरह चीनी भाषा में पढ़ाई होने लगी है.
बीबीसी से बात करते हुए शिनज़ियांग के प्रचार विभाग के वरिष्ठ अधिकारी शू गिज़ियांग ने इस बात को ग़लत बताया कि इस अभियान के कारण माता-पिता से दूर हुए बहुत सारे बच्चों की देखरेख सरकार को करनी पड़ रही है.
वह हंसते हुए कहते हैं, "अगर परिवार के भी सदस्य वोकेशनल ट्रेनिंग पर भेजा गया होगा तो उस परिवार को ज़रूरत दिक्कत होगी. मगर मैंने ऐसा कोई मामला नहीं देखा."
मगर ज़ेंज़ के काम का सबसे अहम हिस्सा शायद वह सबूत है जो दिखाता है कि हिरासत में लिए गए लोगों के बच्चों को बड़े पैमाने पर बोर्डिंग स्कूल सिस्टम में डाला जा रहा है.
वोकेशनल ट्रेनिंग या फिर जेल जाने वाले लोगों के बच्चों की स्थिति का हिसाब रखने के लिए स्थानीय प्रशासन ख़ास फ़ॉर्म इस्तेमाल करते हैं और तय करते हैं कि इन बच्चों को सरकारी देखरेख की ज़रूरत है या नहीं.
ज़ेंज़ को एक सरकारी दस्तावेज़ ऐसा मिला जिसमें "ज़रूरतमंद समूहों" को दी जाने वाले कई तरह के अनुदानों का ज़िक्र था. इनमें वे परिवार भी थे, जिनमें "पति-पत्नी दोनों वोकेशनल ट्रेनिंग कर रहे हों."
साथ ही एजुकेशन ब्यूरो को निर्देश दिए गए थे जिनके तहत कैंपों में रहने वाले लोगों के बच्चों की ज़रूरतों का ख्याल रखना बाध्यकारी बना दिया गया है.
इसमें एक पैरा में लिखा है कि स्कूलों को मज़बूत मनोवैज्ञानिक काउंसलिंग करनी चाहिए. यह वाक्य दिखाता है कि बच्चों के साथ वैसा ही करने की बात हो रही है, जैसा कैंपों मे रखे जा रहे उनके माता-पिता के साथ किया जा रहा होता है.
स्पष्ट है कि इस नज़रबंदी के कारण बच्चों पर पड़े रहे असर को एक अहम सामाजिक समस्या के तौर पर देखा जाने लगा है. इससे निपटने की कुछ कोशिशें भी जा रही हैं मगर प्रशासन इसे प्रचारित नहीं करना चाहता.
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